Tuesday, February 5, 2008

कविता
दफ़न होती आवाज़

हम बस्तर के आदिवासी हैं
तुम्हारे सभ्य और संसदीय भाषा में
आदिम अनपढ असभ्य शबर-संतान
सही में हम अब तक नहीं समझ सके
इन जंगलों-पहाडों के उस पार रहस्य क्या है
कैसे हो तुम, और तुम्हारी बाहर की दुनिया
आपके इन बडे-बडे शब्दों के अर्थ भी
हमारी समझ से अभी कोसों दूर है
विकास शोषण देशप्रेम राजद्रोह कर्म-भाग्य
सदाचार भ्रष्टाचार समर्थन और विरोध
क्या इन शब्दों के अर्थ अलग-अलग हैं ?
जनतांत्रिक समाजवादी राष्ट्रवादी क्षेत्रवादी
पूँजीवादी नक्सलवादी ये सब विचारधाराएँ
क्या तुम्हारे अपने ही हितों के लिए नही हैं ?
और चाहे तुम इनका जैसा उपयोग करो
तुम्हारा ही लिखा इतिहास कहता है
कि तुम सदा से क्रुर रहे हो
आज भी हमसे जहाँ चाहो जय बोलवा लो
तुम्हारे पास जन-धन और सत्ता की ताकत है
साम-दाम और दंड-भेद तुम्हारे अस्त्र-शस्त्र हैं
कर डालो संविधान में संशोधन
हम आदिवासियों के नाम मौत लिखवा दो
हम चुप रहेंगे , कुछ नही बोल सकेंगे
हमारी आवाज़ पर भी तुम्हारा ही पहरा है
हमें तो अभी तक यह भी पता नही
कि आज़ादी का स्वाद कैसा होता है
और आज़ादी के इन साठ सालों में
हमारा कितना और कैसा विकास हुआ
वैसे हम वो नहीं जो विकास का विरोध कर रहे
हम वे भी नही हैं, जो समर्थन में खडे हुए हैं
हम तो वो हैं जो अपनी ही जमीन से बेदखल
शरणार्थियों का जीवन बिता रहे हैं
फिर ये बस्तर के विकास के समर्थन में
या विरोध में खडे आंदोलनरत लोग कौन है ?
हम नही समझ पा रहे हैं
क्यों हम पर गोलियाँ चलाई जाती है
क्यों हमारे बच्चे असमय मारे जाते हैं
बुधनी सरे राह क्यों लूट ली जाती है
और पुलिस के बूटों और बटों से
क्यों उसके पति की हत्या हो जाती है
क्या इन प्रश्नों के उत्तर दोगे तुम ?
इन आंदोलनों के अगुवा होते हो तुम
जिनका अंत तुम्हारे ही हितों से होता है
और आगे भी यह विकास
तुम्हारे लिए ही कल्पतरू सिद्ध होगा
भूख दुख और शोषण ही हमारी नियति है
हमारे नेता तो चुग रहे हैं, तुम्हारा ही चुग्गा
और लड रहे हैं मस्त होकर मुर्गे की लडाई
आओ उर्वर है यह माटी तुम्हारे लिए,आओ
दुनिया भर से अपने रिश्तेदारों को बुलाओ
जंगल काटो, पहाड खोदो, फैक्टरियाँ लगाओ
और हमारी छाती पर मूँग दलवाओ
आओ व्यापारी, व्यवसायी आओ
आओ समाजसेवी, नक्सली आओ
हमारी जिन्दगी और मौत की बोली लगाओ
नेता आओ-मँत्री आओ,साहब और संतरी आओ
पुलिस आओ-फौज़ी आओ,दस लाख का बीमा कराओ
जो मारे जाओ मलेरिया से भी,शहीद होने का गौरव पाओ
हम तो ‘बलि’ के बकरे हैं, हमें दाना चुगाओ
और कोई बडा प्रशासनिक आयोजन कर
झोंक दो, हमें विकास की वेदी में
वहीं दफ़न हो जाएगी हमारी आवाज़
(यह देश तुम्हे ‘भारत-रत्न’ से नवाजेगा।)

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डॉ. नंदन , बचेली , बस्तर (छ.ग.)
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Sunday, February 3, 2008

बस्तर

छत्तीसगढ के दक्षिण में बसा है बस्तर
आओ चलकर देखें क्या है इसके अंदर
ऊँची-नीची पहाडी और बडी-बडी घाटी
नदियाँ है गहरी ,पावन यहाँ की माटी
काँगेर घाटी में देखो,बनभैंसों की टोली
राज्य पक्षी मैना की आदमी सी बोली
चित्रकोट तीरथगढ सुंदर यहाँ झरना
कोटमसर की गुफा से तुम न डरना
शाल और सागौन वनों से गुजरती
बहती है इंद्रावती खेतों को सींचती
बैलाडिला पहाड पर लोहे की खान
इसी से इतराता है देखो ये जापान
जंगलों में खेलते हैं अधनंगे बच्चे
यहाँ के लोग हैं सीधे और सच्चे
बस्तर में लगतें हैं,हाट और बाजार
अनूठी संस्कृति, तीज और त्यौहार
शल्फी और ताडी बस्तर की ठंडाई
ताड तेंदु छिंद महुआ सुंदर मिठाई
शंखनी-डंकनी का संगम अति पावन
सबकी आस्था माँ दंतेश्वरी मनभावन
आमफल जामफल सीताफल रामफल
इनको खाकर ही बच्चे होते पहलवान
लोहे शिल्प और लकडी पर चित्रकारी
इस पर भी भूखी मरे बुधनी बेचारी
चटनी-बासी तीखुर मडिया यहाँ के पकवान
हमारे लिए तो देवी देवता होते हैं मेहमान
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डॉ. नंदन , बचेली, बस्तर (छ.ग.)
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